2020-06-06

हिंदवी स्वराज्य : एक परिपूर्ण व्यवस्था

–  प्रशांत पोळ
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, विक्रम संवत १७३१, तदनुसार अंग्रेजी दिनांक 06 जून १६७४, बुधवार को छत्रपति शिवाजी महाराज का, स्वराज्य की राजधानी रायगढ़ में राज्याभिषेक हुआ. वे सिंहासनाधीश्वर हुए. हिन्दूपदपादशाही की स्थापना हुई. सैकड़ों वर्षों के बाद इस देश में पुनः शक्तिशाली हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी गई.
यह साधारण घटना नहीं थी. इस देश का भाग्य बदलने वाला इतिहास, रायगढ़ में लिखा जा रहा था. यह स्वराज्य यूं ही नहीं प्राप्त हुआ था. ‘मुस्लिम आक्रांताओं को परास्त कर, अपना एक राज्य स्थापन करना’, इतना सीमित उद्देश इसका नहीं था. हजारों वर्षों से अक्षुण्ण ऐसी एक समृद्ध संस्कृति को, उस संपन्न विरासत को, पुनः प्रस्थापित करने का यह सफल प्रयास था. हिन्दूपदपादशाही, या शिवशाही का अर्थ था, ‘सभी को उचित न्याय मिलने वाला, प्रजा के सुख की चिंता करने वाला, बहू / बेटियों को, बुजुर्गों को उचित सम्मान देने वाला, लोक कल्याणकारी राज्य.’ शिवाजी महाराज ने इसके अंतर्गत राज्य व्यवहार के, कुशल प्रशासन के तथा कठोर व निष्पक्ष न्याय के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए.
किसी व्यक्ति का आकलन, उसने किए हुए कार्य पर तो होता ही है. किन्तु उस व्यक्ति के जाने के बाद, उस व्यक्ति के सिद्धांतों का, विचारों का समाजमन पर क्या प्रभाव पड़ा, यह महत्वपूर्ण होता है. शिवाजी महाराज की मृत्यु हुई सन् १६८० में. अगले ही वर्ष, मुगल सम्राट औरंगजेब अपनी पांच लाख की चतुरंग सेना लेकर स्वराज्य पर आ धमका. सारी जोड़-तोड़ करने के बाद, वह संभाजी महाराज से मात्र 2-4 दुर्ग (किले) ही जीत सका. आखिरकार छल कपट कर के, ११ मार्च १६८९ को औरंगजेब ने संभाजी महाराज को तड़पा तड़पा कर, अत्यंत क्रूरता के साथ समाप्त किया. उसे लगा, अब तो हिन्दुओं का राज्य, यूं मसल दूंगा. लेकिन मराठों ने, शिवाजी महाराज के दूसरे पुत्र – राजाराम महाराज के नेतृत्व में संघर्ष जारी रखा. आखिर ३ मार्च १७०० को राजाराम महाराज भी चल बसे. औरंगजेब ने सोचा, ‘चलो, अब तो कोई नेता भी नहीं बचा इन मराठों का. अब तो जीत अपनी है.’
किन्तु शिवाजी महाराज की प्रेरणा से सामान्य व्यक्ति, मावले, किसान… सभी सैनिक बन गए. मानो महाराष्ट्र में घास की पत्तियां भी भाले और बर्छी बन गईं. आलमगीर औरंगजेब इस हिंदवी स्वराज्य को जीत न सका. पूरे २६ वर्ष वह महाराष्ट्र में, भारी भरकम सेना लेकर मराठों से लड़ता रहा. इन छब्बीस वर्षों में उसने आगरा / दिल्ली का मुंह तक नहीं देखा. आखिरकार ८९ वर्ष की आयु में, ३ मार्च १७०७ को, उसकी महाराष्ट्र में, अहमदनगर के पास मौत हुई, और उसे औरंगाबाद के पास दफनाया गया. जो औरंगजेब हिंदवी स्वराज्य को मिटाने निकला था, उसकी कब्र उसी महाराष्ट्र में खुदी.
यह सब कैसे संभव हुआ..? छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात, जो सत्ताईस वर्ष का संघर्ष चला, उस संघर्ष की प्रेरणा थे, शिवाजी महाराज. उन्होंने जो विचार दिया, वह सामान्य जनता के हृदय में जा बसा – “यह ईश्वरी कार्य है. अपने स्वराज्य का निर्माण यह तो ईश्वर की इच्छा है. यह धर्म का कार्य हैं.”
औरंगजेब के पहले तक के लगभग सारे मुगल बादशाहों के नाम, या तो हमे रटे हैं, या फिर उनका उल्लेख बार बार आता है. अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ…. वगैरा. लेकिन औरंगजेब के बाद..? किसी मुगल बादशाह का कोई नाम स्मरण आता है, आपको ? नहीं आएगा. क्योंकि औरंगजेब के दफन होने के बाद, मुगल सल्तनत इतनी कमजोर हो गई, कि उसको मराठे चलाने लगे. जिस दिन रायगढ़ पर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हो रहा था, उसी दिन मुगल साम्राज्य की उलटी गिनती प्रारंभ हो चुकी थी.
सन् १७१९ में मराठों ने दिल्ली पर धावा बोला. तत्कालीन बादशाह ने घबराकर शरणागति स्वीकार की. उसने मराठों को ‘दिल्ली की सल्तनत का रक्षक’ कहा. वैसा करार उनके साथ किया. बाद में, पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद भी, सन् १८०३ तक दिल्ली के लाल किले पर, हिंदवी साम्राज्य का भगवा ध्वज गर्व के साथ लहरा रहा था.
शिवाजी महाराज ने हिंदवी स्वराज्य की एक परिपूर्ण व्यवस्था तैयार की थी. अपने देश में मुस्लिम आक्रांताओं के आने से पहले, राज-काज संस्कृत में, या संस्कृत प्रचुर स्थानिक भाषाओं में होता था. किन्तु मुस्लिम आक्रांताओं ने इस देश के व्यवहार की भाषा को फारसी में बदल दिया. ऐसी भाषा, जो जन-सामान्य को समझती ही नहीं थी. सारे आज्ञापत्र फारसी में ही निकलते थे.
शिवाजी महाराज ने इसको बदला. राज्याभिषेक के समय, उन्होंने रघुनाथ पंडित ‘अमात्य’ और धुंडीराज़ व्यास, इन दोनों के माध्यम से ‘राज व्यवहार कोश’ बनवाया. इसमें, दैनंदिन उपयोग में आने वाले सभी फारसी शब्दों के पर्यायवाची संस्कृत और प्राकृत (मराठी) शब्द दिये हुए हैं. स्वराज्य की सभी सूचनाएं और आज्ञापत्र, इस कोश की सहायता से संस्कृत और प्राकृत में लिखे जाने लगे.
इस हिंदवी साम्राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए शिवाजी महाराज ने अष्ट प्रधानों की योजना की. एक प्रकार से मंत्रिमंडल जैसा इसका स्वरूप था. इनके माध्यम से कार्यों का बंटवारा और जिम्मेदारियों का विकेन्द्रीकरण अच्छे से होता था. अधिकारियों की जिम्मेदारियां (accountability) भी बनती थी. ये अष्ट प्रधान थे –
१. पंतप्रधान (जिन्हें पेशवा भी कहा जाता था) २. पंत अमात्य (वित्त मंत्री) ३. पंत सचिव (कार्यालय प्रमुख) ४. मंत्री (शिवाजी महाराज के व्यक्तिगत सचिव) ५. सेनापति (सेना प्रमुख) ६. पंत सुमंत (विदेश मंत्री) ७. न्यायाधीश  ८. पंडितराव दानाध्यक्ष (धर्मविभाग के प्रमुख)
इन सभी प्रधानों को मिलने वाला वेतन अच्छा खासा होता था. इनको औसत दस हजार से पंद्रह हजार सोने के ‘होन’ (शिवाजी महाराज के समय की मुद्रा. १ होन लगभग ३ ग्राम का होता था.) यह वार्षिक वेतन था. शिवाजी महाराज अपने लोगों की बहुत चिंता करते थे. किन्तु इसी के साथ वे बड़े कठोर अनुशासन की अपेक्षा रखते थे. पन्हालगड़ (कोल्हापुर) के युद्ध के समय, सेनापति नेतोजी पालकर विलंब से पहुंचे. शिवाजी महाराज की रणनीति गड़बड़ा गई. एक हजार मराठे मारे गए. शिवाजी महाराज ने तत्काल प्रभाव से नेतोजी पालकर को बर्खास्त किया.
मिर्जा राजे जयसिंह से पराभव और बाद में उनसे करार करना और फिर आगरा जाना, यह शिवाजी महाराज के जीवन का दुखद अध्याय रहा. इस करार में, उन्होंने अपने ‘प्राणों से प्यारे’, २३ दुर्ग (किले) मुगलों को दे दिये. ५ मार्च १६६६ को शिवाजी महाराज आगरा जाने के लिए निकले. १२ मई को वे आगरा पहुंचे और १७ अगस्त १६६६ को शिवाजी महाराज आगरा से निकल चुके थे. स्वराज्य में वापस आने के बाद, शिवाजी महाराज ने अपनी इस त्रासदी पर गहन चिंतन किया. आज की भाषा में जिसे SWOT Analysis (Strength, Weakness, Opportunity, Threats) कहते हैं, उस पर विचार किया. आगरा जाते समय शिवाजी महाराज के पास मात्र १७ दुर्ग (किले) शेष बचे थे. उनके आगरा प्रवास के दरम्यान, जीजाबाई ने एक किला और जीत लिया था. यानि संख्या हुई १८. आने के बाद, पूरे सवा तीन वर्ष शिवाजी महाराज ने इस विषय पर, तथा स्वराज्य की मजबूती पर मनन-चिंतन किया. दुर्ग यह स्वराज्य की सुरक्षा के आधारस्तंभ हैं, यह बात एक बार फिर उन्होंने अधोरेखित की.
इसके बाद, शिवाजी महाराज ने कई निर्णय लिए. तब तक स्वराज्य की राजधानी राजगढ़ थी. इसके पास तक शत्रु सेना पहुंच जाती थी. इसलिए, राजधानी की सुरक्षा के लिए, उन्होंने दुर्गम पहाड़ पर बनाए हुए रायगढ़ दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया. सवा तीन वर्ष के बाद, उन्होंने कोंडाणा (सिंहगड) लेने के लिए तानाजी को कहा. यह उनका १९वां किला था.
इसके बाद शिवाजी महाराज ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. अगले मात्र ८ वर्षों में, अर्थात् १६७८ तक, उन्होंने २६० दुर्ग (किले) जीत लिए थे. हिंदवी स्वराज्य, एक मजबूत आकार ले रहा था…!
शिवाजी महाराज यह शक्तिशाली, समृद्ध और परिपूर्ण ऐसी हिन्दू संस्कृति के संवाहक थे. अखिल हिंदुस्तान को आक्रांताओं से मुक्त करने का, काशी-मथुरा-अयोध्या को पुनः प्राचीन वैभव दिलाने का उनका स्वप्न था.
१९६१ में, महाराष्ट्र राज्य की स्थापना होने के पश्चात, मुंबई में ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ पर शिवाजी महाराज की भव्य अश्वारूढ़ प्रतिमा का अनावरण हुआ. अध्यक्षता कर रहे थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण. उन्होंने अपने भाषण में कहा, “यदि शिवाजी महाराज नहीं होते, तो पाकिस्तान की सीमा, महाराष्ट्र के अंदर होती…”
इसी बात को कविराज भूषण ने बड़े ही प्रखरता से कहा हैं –
देवल गिरावते फिरावते निसान अली ऐसे डूबे राव राने सबी गये लबकी,
गौरागनपति आप औरन को देत ताप आप के मकान सब मारि गये दबकी.
पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत सिद्ध की सिधाई गई रही बात रबकी,
कासिहू ते कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥
सांच को न मानै देवीदेवता न जानै अरु ऐसी उर आनै मैं कहत बात जबकी,
और पातसाहन के हुती चाह हिन्दुन की अकबर साहजहां कहै साखि तबकी.
बब्बर के तिब्बर हुमायूं हद्द बान्धि गये दो मैं एक करीना कुरान बेद ढबकी,
कासिहू की कला जाती मथुरा मसीद होती सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥
कुम्भकर्न असुर औतारी अरंगज़ेब कीन्ही कत्ल मथुरा दोहाई फेरी रबकी,
खोदि डारे देवी देव सहर मोहल्ला बांके लाखन तुरुक कीन्हे छूट गई तबकी.
भूषण भनत भाग्यो कासीपति बिस्वनाथ और कौन गिनती मै भूली गति भव की,
चारौ वर्ण धर्म छोडि कलमा नेवाज पढि सिवाजी न होतो तौ सुनति होत सबकी॥

अगर सिवाजी न होते, तो सुन्नत होत सबकी…!

2017-07-02

Mêeêgòhý _eµeûe _að aýûi _ì‰òðcû

02/07/2017

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2014-03-29

29/03/2014

29/03/2014

bûeZúd ^aahð-@ûc Êûbòcû^e C›




bûeZúd ^aahð-@ûc Êûbòcû^e C›
                                             -ùMûfL P¦â \ûi
(eûÁâúd ^aahð 31 cûyð 2014 @aieùe )
bûeZ ùMûUòG _êeûZ^ eûÁâ û Gjò iûõÄéZòK eûÁâe GK ÊZª _eòPd @Qò û ùMûUòG RûZò,ùMûUòG ibýZû ZòÂòeùj @ZúZe cjû^ HZòjý,ùfûK _eµeû I iõÄéZòKê ù^A û Mað @^êbaKùe Zûe Êûbòcû^ @ûcôc~ðýû\ûKê ù^A Cycìfýùaû]e cìfýûd^ Keò û @^ý[û AZòjûie @[k Mbðùe fú^ ùjûA~ûG ùi RûZò û ùfû_ _ûA~ûG ùi ibýZû û @ûcô c~ðýû\û Êûbòcû^ bìfò Pûfò[ôaû RûZò _eû^êKeY Keò ùjûA~ûG aòKkûw û @ûRò bûeZúdcûù^ ^òR Êûbòcû^ I @ûcôc~ðýû\û bêfò ~ûAQ«ò û Mûeòcûcd @ZúZe HZòj ùfûK _eµeûKê bêfò \ûi iêfb \ûeû^êKeY KeòPûfòQò @û]ê^òKZû ^ûcùe _û½ûZýe @§û^êKeY Keò û Êû]ú^Zûe adi ù~ùZ ù~ùZ aXò PûfòQò @ûùc ùiùZ _ûùgûeò PûfòQê _eµeû,AZò ùjûA PûfòQò HZòjý û  ù~Cñ[ô _ûAñKò iéÁòe _â[c \ò^Kê @ûùc ^ì@ûahð eìù_ _ûk^ KeòaûKê bêfò ~ûA ùKCñ GK @^ûcù]d \òaiKê _ûk^ KeêQê ^ì@ûahð eì_ùe û  C›a _â]û^ @ûc ù\ge Gjò aòùghZû Kò @ûce C›a cù^ûaòù^û\ _ûAñ ^êùjñ Kò icd aòZûAaûe iû]^ ^êùjñ û Kò«ê @ûce C›a @ûce ùMøeacd @ZòZKê iàeY Keòaûe GK @aie û _âKéZòùe ùjC[ôaû _eòaZð^e iò¡û«Kê @ûce _ìaðRcûù^ @ûcKê gòLûAQ«ò û _eòaZð^e Gjò C›a iûcûRòK ÊzZû Gaõ flýKê c¤ ^ò¡ðûeòZ Keò[ûG û
bûeZúd ^a ahð @ûe¸e gêb \òai @ûc bûeZúdcû^u _ûAñ iûcû^ý \òai ^êùjñ  Gjû aògòÁ,CùfäL^úd, ùMøeaû^ßòZ Gaõ _âKéZò\Z û iéÁòùe ejò[ôaû Mâj ^ùlZâe Pk^ I _eòaZð^e jòiûa KòZûa @ûc ùa÷mû^òK  Gaõ MYòZmu Pò«û I ùPZ^ûe _eòPûdK û jRûe,fl ahð_ìùað iê\êe @«eòlùe aòPeY Keê[ôaû Mâj ^ùlZâe MZòaò]ôKê  Kò_eò @ûce _ìaðRcûù^ cû_ò _ûeê[ôùf I ^òe«e ^òRe ^òeòlY _eò]ô c¤ùe eLô _ûeê[ôùf Zûjû aògßaûiúuê @û½~ðý Keòù\A[ôfû û iéÁò MY^ûe ù~ùZ ùb\ bûeZúdcû^uê RYû [ôfû iõiûeùe @^ý KûjûeòKê RYû ^[ôfû û Gjû GK ÊZª Gaõ aòÉéZ Z[û aýû_K aòhd  ~ûjûKò  MYòZ,@«eòl  aòmû^, _~ðýûaeY,ùRýûZòh @û\ò @^ý aòhd ijòZ i´§ ejòQò û EZê c¤ùe iêlà _eòaZð^ @ûc Ehòue ZúlþY  ^Reùe Q`ò ejò ^ûjó û bûeZùe EZêu iõLýû Q@ @ùU û @ûùc ù~Cñ\ò^Kê ahðe _â[c \ò^eìù_ cû^ê@Qê ùijò\ò^ aâjàû iéÁòe iRð^û Keò[ôùf û aògßaûiú GjûKê cû^«ê ^ cû^«ê Kò«ê @ûce ahð MY^ûùe ùa÷mû^òK _¡Zòe cjZß ejòQò û @ûce icd MY^û aòmû^ i¹Z û Gùa ùa÷mû^òKcûù^ @û]ê^òK C_KeY Gaõ mû^ \ßûeû  _é[ôaúe adi MY^û KeêQ«ò û Gjò MY^û @ûce cê^ò Ehòcûù^ ajê _ìaðeê aò^û ~ª_ûZò iûjû~ðýùe KeòQ«ò û ùi MY^û Keò ~ûjû Kjò[ôùf ùijò K[û Gùae ùa÷mû^òKcûù^ KjêQ«ò û ùZYê bûeZúd KûkMY^û iað _êeûZc Kûk MY^û @ùU û bûeZúd Kûk MY^û @^êiûùe ùP÷Zâ gêKä _âZò_\û ùjCQò iéÁòe @ûe¸ \ò^ û Gjò Zò[ôe ]ûcòðK,ù_øeûYòK Gaõ HZòjûiòK cjZß c¤ ejòQò û Gjò \ò^ùe c~ðýû\û _êeêùhûZc gâúeûc P¦â I ]cðeûR ~ê]ôÂòeu eûRýûbòùhK ùjûA[ôfû û aòKâcû\òZý gKþ cû^uê _eûRòZKeò gKûeú C_û]ô ]ûeY Keò[ôùf I aòKâc i´Zþ _âPk^ Keò[ôùf û Êûcú \dû^¦ @û~ðý icûR _âZòÂû Keò[ôùf û ùijò KûeYeê bûeZ ahð _ûAñ ùP÷Zâ gêKä  _âZò_\ûe HZòjûiòK cjZß iaðR^ aò\òZ û aòKâc i´Zþ ijòZ aòKâcû\òZýu icdùe bûeZ ahðùe gòlû , iõÄéZò, @[ð^úZò,Kkû, iÚû_Zý, iêgûi^ @û\ò ùMøeacd Kûk LŠe iàeY ÊûbûaòK eìù_ @«KeYùe iõPeòZ jêG û bûeZúd icd MY^ûùe ùQûUeê ùQûU I aWeê aW MY^û bûeZúd ùa÷mû^òKue aògßKê GK aòùgh @a\û^ û aeûjcòe, @û~ðýb… I bûÄeûPû~ðýu bkò @û]ê^òK ~êMe ùa÷mû^òKcûù^ ^òR ^òRe Mâ^Úùe
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bûeZúd Kûk MY^û _^Ú ^òeù_l @ùU û iéÁò eP^û ijòZ eûÁâe ùMøeagûkú @ZúZKê cù^ _KûA \òG û  ùKak GZòKò ^êùjñ aâjàûŠe _êeûZ^ Mâ^Ú ùa\ùe Gjò \ò^ aòhdùe a‰ð^û Kûe~ûAQò û ùiøe cŠkùe [ôaû Mâj, ^ùlZâe iÚòZòKê ù^A @ûce \ò^,cûi, ahð iÚòe Keû~ûAQò û ~ûjûKò aòmû^ i¹Z û LùMûk aòmû^ùe iéÁòKê  _õPcŠkúd Kâcùe bûeZúd ùa÷mû^òKcûù^ ^òR ^òR Mâ^Úùe ùLûRòaû @ûe¸ Keò[ôùf û Kâcû^ßdùe GMêWòK ùjùf P¦â cŠk, _é[ôaú cŠk, iì~ðý cŠk, _eùcÂò cŠk I Êdõbì cŠk û Gjò icÉ cŠk CZeùZûe _eòbâcY Keò @ûiêQ«ò û Gjò _eòbâcYKê @û]ûe Keò bûeZùe Cbd iì~ðý I P¦âcûie MY^û _¡Zò aòKiòZ ùjûAQò û bMaZùe c]ý Kûk MY^û iê¦e bûaùe a‰ð^û Keû~ûAQò û Kûke aéjZc MY^û KeòaûKê bûeZúd ùa÷mû^òKcûù^ ilc ùjûA _ûeò[ôùf û bûeZúd KûkMY^ûe aéjZc MY^û _âûd  ~êM MY^û Vûeê @ûe¸ ùjûA[ûG û iZý,ùZâZdû,\ßû_e I Kkò  Gjò PûùeûUò ~êMe aòùaP^û Keû~ûAQò û \ßû_e ~êMe @a]ô Kkò ~êMe \êAMêY ùjûA[ôaû ùaùk ùZâZdû Kkòe Zò^ò MêY I iZý Kkòe Pûeò MêY Gjò_eò MY^û Keû~ûA ~êMe aòùaP^û Keû~ûAQò û Pûeò ~êMe Kûkûa]ôKê ùMûUòG cjû~êM Kêjû~ûG û GKÉeú cjû~êM I ùMûUòG iZý~êM cògò GK c^ß«e jêG û PC\ c^ß«e I ùMûUòG iZý ~êM cògòùf ùMûUòG KÌ jêG û \êAUò KÌ cògò aâjàûue ùMûUòG \ò^ jêG û aâjàûue @ûdê GKgj ahð ùaûfò aòùaP^û Keû~ûAQò û GKgj ahðùe ùMûUòG ùMûUòG cjûKÌ jêG û ùaûfò bûeZúd c^òhúcûù^ MY^û aýaiÚûùe i^ÜòùagòZ Keò~ûAQ«ò û ùijò Kâcùe iZý,ùZâZdû,\ßû_e _ùe cjûKûk ùP÷Zâ gêKä _âZò_\û \ò^ ùa÷aÊZ c^ß«ee Kkò~êMe 5116ùe _âùag Keòa û AõeûRú ZûeòL 31 cûyð 2014\ò^ ùP÷Zâ cûie _â[c \òaiùe Gjò NUYû NUòa û eûÁâúd ^aahðe  gêb @ûe¸ ùjaû @aieùe bûeZ ieKûe eûÁâúd _¬òKû _âÉêZ Keò[û«ò Gaõ iûeû ù\gùe C_f² KeûA [û«ò û ieKûeu \ßûeû _âPkòZ eûÁâúd _õPûw @ûRò _~ðý« Gjò Kûk MY^û _¡Zòe @û]ûeùe Pûfò@ûiêQò û

bòiûKòI,NòMòWò@û, aûeê@, ùK¦âû_Wû
ùcû-9861028553

2014-01-10

10/01/2014

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Êûcú aòùaKû^¦ Gjò iciýûe icû]û^ Keòaû _ûAñ “ZýûM I ùiaû” @û\gðùe @û]ûeòZ eûÁâ _ê^ð^òcðûYe aòPûe ù\AQ«ò û ~ûjû ~êaKcû^ue cêLý ù¤d ùjaû CPòZþ û ~òG Meòae Meòa Gaõ KÁ _âZò iù´\^gúk  ùjûA[ôa,Zûue @ûLô ^ù_ûQòaû _~ðý«  ^ò\ @ûiòa ^ûjó û ùi_eò ~êaK ^òcðûY ùjaû CPòZþ û aòùaKû^¦ KjòQ«ò -~\ò @ûce ~êaKu c^ùe Gjòbkò iù´\^gúk C_ô^ ùjûA~òa,ùZùa ùicû^ue @û«eòK gqò _âû¯ ùjûA~òùa û ~òG cû^a icûRe iciýûKê icû]û^ Keòù\ùa û ùicû^u _ûAñ Zòù^ûUò MêYe @ûagýKZû û ùiMêWòK ùjCQò _aòZâZû,]~ðý I ic_ðY û
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